एक टूटे तारे की कुछ बुझती सी ख्वाहिश थी....
एक चाँद के उजले टुकड़े की मद्धिम सी फरमाईश थी..
कुछ रोशन से दीपक थे, कुछ तिरछी सी परछाई थी...
कुछ इठलाते ख्वाब भी थे, वीरानी थी, तन्हाई थी....
सावन के इस मौसम में, जब कोयल कूका करती थी...
तुम दूर सुन रही हो मुजको, चुपके से बोला करती थी...
तुम मिल जाओ सब खिल जाये, मैं रोज़ ये सोचा करता था...
धरती के हर ज़र्रे में मैं तुमको खोजता रहता था..
कल रात को तुम सपने में आई और दिल को ऐसे छेड़ गयी...
कुछ जोड़ गयी, कुछ तोड़ गयी, फिर तन्हा मुझको छोड़ गयी....
तेरी सूरत, तेरी सीरत धुंधलाई है यादों में..
पर तुज्को अब मैं पाता हूँ दबी हुई कुछ आहों में..
जब झाँका तेरी आँखों में, हर लम्हा सपने में ढल गया...
जाने क्यों अम्बर पिघल गया, बातों में, शब्दों में घुल गया...
मैं देख के तुझको विस्मित हूँ....
कैसे तू मुझको यूं मिल गया..
कैसे तू मुझको यूं मिल गया..
Random Thoughts…
10 years ago